Catchline:
17 साल पुराने Malegaon Blast केस में आया बड़ा फ़ैसला – कोर्ट ने क्यों बरी किया Pragya Singh Thakur और Col. Purohit?
भूमिका
Malegaon Case: 2008 में महाराष्ट्र के मालेगांव में हुए बम धमाकों ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था। इस ब्लास्ट में 6 लोगों की जान गई और दर्जनों घायल हुए। उस समय इस केस ने एक नया मोड़ लिया जब इस विस्फोट के आरोप में हिंदू संगठन से जुड़े नाम सामने आए – जिसमें प्रमुख रूप से साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर और कर्नल श्रीकांत पुरोहित के नाम थे। 17 सालों की लंबी कानूनी प्रक्रिया, राजनीति, बहस और विवादों के बाद अब 2025 में मुंबई की विशेष NIA कोर्ट ने इस केस में सभी आरोपियों को बरी कर दिया है। यह फैसला कई सवाल खड़े करता है – क्या यह न्याय है या राजनीतिक मोड़?
1. मालेगांव ब्लास्ट 2008: एक झटका
- तारीख: 29 सितंबर 2008
- जगह: भीड़भाड़ वाला मुस्लिम इलाका, मालेगांव
- मौतें: 6
- घायल: 100+
- विस्फोट: मोटरसाइकिल में लगाया गया आईईडी
- शुरुआती शक: मुस्लिम कट्टरपंथी समूहों पर
2. केस का टर्निंग पॉइंट
जब ATS ने जांच आगे बढ़ाई तो चौंकाने वाले खुलासे हुए। मोटरसाइकिल की रजिस्ट्रेशन डिटेल्स साध्वी प्रज्ञा के नाम से जुड़ी थीं। फिर खुलकर सामने आया ‘हिंदू आतंकवाद’ का टर्म – जो कि देश में पहली बार इतनी ज़ोर से उछला।
3. आरोपी कौन थे?
- साध्वी प्रज्ञा ठाकुर
- कर्नल श्रीकांत पुरोहित
- मेजर (रिटा.) उपाध्याय
- समीर कुलकर्णी
- सुधाकर द्विवेदी
- राकेश धावड़े
इन सभी पर UAPA (Unlawful Activities Prevention Act), हत्या, आपराधिक साजिश, और विस्फोटक अधिनियम के तहत केस चला।
4. राजनीतिक तूफान
कांग्रेस और बीजेपी के बीच इस केस को लेकर लंबे समय तक खींचतान रही। कांग्रेस ने इसे ‘हिंदू आतंक’ का उदाहरण कहा, तो वहीं बीजेपी और आरएसएस ने इसे बदनाम करने की साजिश बताया। साध्वी प्रज्ञा को टिकट देकर 2019 में भोपाल से सांसद भी बनाया गया।
5. जांच एजेंसियों की लड़ाई
इस केस की जांच पहले महाराष्ट्र ATS ने की थी, बाद में NIA (राष्ट्रीय जांच एजेंसी) को सौंप दी गई। NIA ने कई सबूतों को पर्याप्त न मानते हुए आरोपियों को राहत देने की सिफारिश की। यही वह बिंदु था जहां केस में उलझन बढ़ी।
6. सबूतों की कमी या जांच में खामी?
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि:
- अभियोजन पक्ष आरोपी के खिलाफ आरोप सिद्ध नहीं कर पाया।
- गवाहों के बयान विरोधाभासी थे।
- कुछ गवाहों ने कोर्ट में बयान बदल दिए।
- इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य, कॉल रिकॉर्डिंग और पत्राचार निर्णायक नहीं थे।
7. Malegaon Case कोर्ट का फैसला: सभी आरोपी बरी
विशेष NIA अदालत ने 28 जुलाई 2025 को अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि:
“अभियोजन पक्ष ये साबित नहीं कर पाया कि आरोपियों ने साजिश रची या धमाके में भाग लिया।” इस फैसले में सभी 7 आरोपी बरी कर दिए गए।
8. पीड़ित परिवारों का पक्ष
- पीड़ित परिवारों ने इस फैसले पर गहरा दुख जताया।
- उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में अपील की बात कही है।
- कुछ सामाजिक संगठनों ने भी इस फैसले को ‘न्याय की हार’ कहा।
9. राजनीतिक प्रतिक्रियाएं
- बीजेपी: “यह सत्य की जीत है। राजनीतिक षड्यंत्र के शिकार हुए थे आरोपी।”
- कांग्रेस: “जांच एजेंसियों को दबाया गया। यह न्याय प्रक्रिया के साथ खिलवाड़ है।”
- AIMIM: “पीड़ितों को न्याय नहीं मिला। हम सुप्रीम कोर्ट जाएंगे।”
10. क्या यह केस एक मिसाल है?
यह फैसला भारत में आतंकवाद मामलों की जांच, अभियोजन और न्याय प्रणाली पर बड़ा सवाल उठाता है।
- क्या धार्मिक पहचान के आधार पर जांच प्रभावित हुई?
- क्या राजनीतिक दलों ने इसे अपने-अपने पक्ष में मोड़ा?
- क्या हमें जांच एजेंसियों की स्वतंत्रता पर दोबारा चर्चा करनी चाहिए?
अगर आप चाहते हैं कि ऐसे केसों में न्याय मिले और सिस्टम में पारदर्शिता बनी रहे, तो अपनी आवाज़ उठाइए।
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