Catchline
“हरतालिका तीज – एक व्रत नहीं, स्त्री शक्ति और प्रेम का प्रतीक है।”
हरतालिका तीज – शिव-पार्वती का प्रेम
भारत की संस्कृति और परंपराओं में व्रत-उपवास का विशेष स्थान है। हर एक व्रत का उद्देश्य न सिर्फ धार्मिक आस्था को मजबूत करना होता है, बल्कि जीवन को अनुशासित और आध्यात्मिक बनाने का भी होता है।
इन्हीं व्रतों में हरतालिका तीज का व्रत बेहद खास माना जाता है। इसे सौभाग्यवती स्त्रियों का महापर्व कहा जाता है।
हरतालिका तीज खासतौर पर शिव-पार्वती के प्रेम, तपस्या और विश्वास की याद दिलाता है।
मान्यता है कि इस व्रत को करने से स्त्रियों को अखंड सौभाग्य, पति की लंबी उम्र और दांपत्य सुख की प्राप्ति होती है।
महत्व हरतालिका तीज का
हरतालिका तीज हर साल भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाती है।
इसे मुख्य रूप से उत्तर भारत में उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, राजस्थान और मध्य प्रदेश की महिलाएं धूमधाम से करती हैं।
- यह व्रत निर्जला व्रत होता है, यानी इसमें भोजन और जल का त्याग किया जाता है।
- स्त्रियां इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की आराधना करती हैं।
- व्रत कथा सुनना और उसका पाठ करना इस दिन विशेष महत्व रखता है।
हरतालिका तीज की पौराणिक कथा
अब जानते हैं इस व्रत की कथा, जो हर वर्ष लाखों स्त्रियां श्रद्धा से पढ़ती और सुनती हैं।
कथा की शुरुआत
एक समय की बात है, राजा हिमवान की पुत्री पार्वती ने भगवान शिव को अपने पति के रूप में पाने का निश्चय किया।
उन्होंने बाल्यकाल से ही शिव को अपना पति मान लिया और उनके लिए कठोर तपस्या शुरू कर दी।
माता पार्वती की तपस्या
पार्वती ने गहन जंगलों में जाकर निरंतर शिव का ध्यान और तप किया।
कई वर्षों तक कठोर तपस्या करते हुए उन्होंने जल और भोजन तक का त्याग कर दिया। उनकी तपस्या इतनी गहन थी कि देवताओं तक ने उनके संकल्प को देखकर आश्चर्य किया।
माता का अपहरण
पार्वती के माता-पिता को उनकी तपस्या देखकर चिंता हुई। उन्होंने चाहा कि पार्वती का विवाह किसी योग्य राजकुमार से हो।
लेकिन पार्वती शिव के अलावा किसी और को अपना पति मानने को तैयार नहीं थीं।
एक दिन उनकी सखियों ने पार्वती को यह समझाया कि यदि वे अपने माता-पिता की इच्छा मान लेंगी तो उनका सपना अधूरा रह जाएगा।
तब पार्वती की सहेलियां उन्हें वन में ले गईं और वहीं उन्होंने भगवान शिव की कठोर उपासना शुरू की।
इसी कारण इस व्रत का नाम पड़ा “हरतालिका” (हरण + आलिका अर्थात सहेलियों द्वारा ले जाया जाना)।
भगवान शिव का वरदान
पार्वती की तपस्या और दृढ़ निश्चय से प्रसन्न होकर भगवान शिव प्रकट हुए। उन्होंने पार्वती को पत्नी रूप में स्वीकार किया। तभी से यह व्रत स्त्रियों के लिए अखंड सौभाग्य और अटल प्रेम का प्रतीक बन गया।
व्रत की विधि
- व्रत की तैयारी – स्त्रियां एक दिन पहले से ही उपवास की तैयारी करती हैं। मेहंदी रचाना, नए वस्त्र पहनना और श्रृंगार करना इस व्रत का हिस्सा है।
- निर्जला उपवास – इस दिन महिलाएं पूरे दिन बिना जल और अन्न के रहती हैं।
- पूजन सामग्री – शिव-पार्वती की मिट्टी या धातु की मूर्ति बनाई जाती है। बेलपत्र, दूर्वा, अक्षत, पुष्प और धूप-दीप से पूजा होती है।
- व्रत कथा श्रवण – पूजन के समय स्त्रियां हरतालिका तीज की व्रत कथा सुनती हैं।
- रात्रि जागरण – कई जगहों पर महिलाएं रात भर भजन-कीर्तन करती हैं।
व्रत का महत्व और फल
- इस व्रत को करने वाली स्त्रियों को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
- माना जाता है कि इससे पति की आयु लंबी होती है और दांपत्य जीवन सुखमय बनता है।
- जो अविवाहित कन्याएं इस व्रत को करती हैं, उन्हें योग्य वर मिलता है।
लोक मान्यताएं और रीति-रिवाज
- हरतालिका तीज पर महिलाएं सोलह श्रृंगार करती हैं।
- झूले पर झूलना और गीत गाना इस दिन का विशेष आकर्षण होता है।
- कई जगहों पर महिलाएं मिलकर सामूहिक पूजा करती हैं।
आधुनिक समय में हरतालिका तीज
आज के समय में भी यह व्रत उतनी ही आस्था से किया जाता है। भले ही जीवनशैली बदल गई हो, लेकिन स्त्रियों की आस्था और विश्वास में कोई कमी नहीं आई है। सोशल मीडिया और डिजिटल युग ने इस पर्व को और लोकप्रिय बना दिया है।
धार्मिक और सामाजिक दृष्टि से महत्व
हरतालिका तीज केवल धार्मिक पर्व ही नहीं है, बल्कि यह स्त्री शक्ति का भी उत्सव है। यह महिलाओं को अपनी भावनाओं और विश्वास को प्रकट करने का अवसर देता है।
निष्कर्ष
हरतालिका तीज की व्रत कथा केवल धार्मिक मान्यता तक सीमित नहीं है, बल्कि यह प्रेम, विश्वास और नारी शक्ति की अनोखी गाथा है। इस व्रत से महिलाओं को अपने जीवन में सकारात्मक ऊर्जा, आत्मबल और मानसिक शांति मिलती है।
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